हम अक्सर अपनी
जिंदगी के पहलुओं को अलग-अलग
तरह से दोहराते हैं। शहर में
अपनी ज़िन्दगी को तराशते हुए
कई तरह के रियाज़ों से गुजरते
हैं और उन्हें महसूस कर बाँटते
चले जाते हैं। कुछ ऐसा ही आज
साथियों के बीच हलचल को देखकर
लग रहा है।
"अपने
मन की करने का दिन"
खूब समझ
आ गया था साथियों को इसलिए
आँखों ही आँखों में शरारत फूट
पड़ी। मन की करने कि बात ने ही
जैसे कोई हलचल साथियों में
भर दी हो। चेहरे पर शरारत उतर
आई और बिना किसी बात पर हँसी
फूट पड़ी। उनमें से एक-
“भईया
आज हमारे मन की करवाओगे तो आज
मैं फहाद को मारूँगा इसने मेरे
बेग पर पानी गिरा दिया लेकिन
मैने इसे अभी कुछ नहीं कहा
क्योंकि आप आ गए हो। यह बात
सुनते ही जैसे सबको हँसने का
मौका मिला हो और सब मुस्कुरा
भी दिये।
क्लास में कुछ
आवाज़े ऐसी होती हैं जो शायद
बिना बोले क्लास कि पहचान बनती
है और उसे शोर से अलग करती है।
कमरे की दीवार
पर सुन्दर नगरी की कई कोनों
की फोटो के लगते ही जैसे जगह
ने उनके बीच अपनी शामिलगिरी
कर दी हो। साथी अपनी मौज़ुदगी
और जगह से दूरी और नज़दीकी को
बयाँ कर रहे थे। एक बोला-"अरे
देख साईकिल वाली गली,
यार उस
दिन पापा ने देख लिया था साईकिल
चलाते हुए तो बहुत मार पड़ी।"
दूसरा
हँसते हुए-
“ अबे
यहाँ आकर देख राजा कोल्ड-ड्रिंक
जहाँ रोज़ जाते हैं। इनकी
कोल्ड-ड्रिंक
अच्छी लगती है मुझे तो।"
पहला-
"मुझे
तो दूसरे वाले की अच्छी लगती
है।"
तीसरा-
"ओए देख
स्कूल वाली गली,
जब पहले
वाले ने नहीं सुना तब तीसरे
ने, उसका
हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचते
हुए कहा:
अबे यहाँ
आकर देख स्कूल वाली और पार्क
वाली दीवार जिससे एक बार तू
गिरा था। उसके सिर पर हाथ मारकर
और उसकी हँसी उढ़ाते हुए उसने
इस बात को ज़ोर देते हुए कहा
और इस हँसी में कुछ और साथी भी
शामिल हुए।
क्लास कई हिस्सों
में बटी नज़र आ रही है। कुछ
लिखने में लगे हैं तो कुछ डेस्क
पर बैठकर जो अकेले ही किसी एक
फोटो में न जाने क्या तलाश
रहें हैं उनकी इस तलाश में कोई
शामिल नहीं हैं। वो एक फोटो
देखते और फिर दुसरी फोटो ताकते।
उनकी इस ताकझांक में कोई भाव
नज़र नहीं आ रहे। बस एक जल्दी
है किसी तह तक पहुँचने की। कुछ
साथी क्लास के बाहर जाते और
कुछ और साथियों को साथ लेकर
अन्दर शामिल होते।