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Tuesday, November 19, 2013

ख़ामोशी का दिन

पढ़ने की  बारी अब राधा की  थी।  उसने किताब न पढ़ पाने को लेकर अपनी कठिनाई को नहीं बल्कि न पढ़ने की इच्छा को तवज्ज़ो दी।  आज वो अपनी बारी आने पर चुप हो गई और इधर-उधर देखने लगी।  मगर आज उसे पढ़ना ही होगा क्योंकि टीचर ने उसे न पढ़ने वाले बच्चों के कैनवस में उतार लिया था।  एक -दो शब्द पढ़कर उसने फिर चुप्पी साध ली। 

इधर टीचर की ओर से नसीहतों  की बारिश-सी  बरस रही थी जिसमे पूरी क्लास भीग रही थी। लेकिन वह टस से मस न हुई। उसने जैसे ठान लिया था कि वह आज नहीं पढ़ेगी।  टीचर की सारी बातें बे-असर होकर उसके आगे से निकलती जा रही थी।  वह चुप्पी साधे खड़ी  रही  और इतने पर भी कुछ न बोली। वो सबकी नज़रों से अपनी नज़र बचाते हुए किताब में निगाह गढ़ाए हुए थी। दरअसल, इच्छा और अनिच्छा के बीच उपजती कमज़ोर और ताक़तवर टकराहट कुछ देर के लिए ख़ामोशी उधार ले आती है।  कमज़ोर की ओर से कोई प्रतिक्रिया न करना सामने वाले की ताकत के वार को बार-बार परास्त  करता जाता है।  राधा भी आज शायद समझ चुकी थी कि चुप्पी  के सामने टीचर की एक भी नहीं चलने वाली। 

क्लास में सबके लिए पढ़ना हमेशा दिलचस्प नहीं होता। कई बच्चे पाठ पढ़ने और ज़िन्दगी जीने की कश्मकश में जी रहे होते हैं।  कभी-कभी पाठ उनकी रोज़ाना की ज़िन्दगी के पैमाने को नहीं छू पाता। अक्सर पाठ और पाठक के जुड़ाव के बीच मेल-जोल न बनने से कश्मकश और उबाऊपन की धारा  निकल पड़ती है। 

अचानक दरवाज़े पर किसी के दस्तक ने उनके नसीहतों  को रोक दिया और उन्होंने पलट कर देखते हुए पूछा, "कहिए, क्या काम है ?"

उस चेहरे ने अटकते हुए जवाब में कहा, "जी, मैं शालू का पिता हूँ।  आपने बुलाया था?"

पूरी क्लास का ध्यान उस चेहरे ने पल में बटोर लिया था। 

टीचर ने शालू को बुलाते हुए अपनी बात कुछ यूँ कही, "आप ये साफ़ -साफ़  बताइये कि आपको इस लड़की को पढ़ाना है या नहीं"

"क्यों, क्या हुआ मैंडम जी?" शालू के पिताजी ने दबी-सी आवाज़ में पूछा।


कुछ पल पहले के गुस्से से ही भरी टीचर न्र कहना शुरू किया, " आप लोग महीनों गायब रहते हो और वजीफे के  टाइम पर नज़र आते हो।  आपकी लड़की स्कूल कितना कम आती है।  पढ़ने में एकदम ज़ीरो है इसका ध्यान भी है कुछ आपको ?"

टीचर की बात और उनकी शिकायत का अंदाज़ शालू को कतई पसंद न आया।  एक पल उसने टीचर को बड़ी बेरुखी से घूरा  और दूसरे पल अपने पिता को अपमानित-सा खड़े देखकर नज़रें झुका ली।  पूरी क्लास एकदम खामोश थी। 

कुछ पल के बाद उसके पिताजी ने कहा, "मैडम, मैं तो काम के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहता हूँ इसलिए बच्ची कब स्कूल आती है कब नहीं, इसका पता ही नहीं चल पाता। लेकिन अब ये रोज़ स्कूल आएगी।  आप चिंता न करें। "


शालू के पिता के जाने के बाद टीचर के रैवेये पर साथियों की फिर से मिली-जुली आवाज़े ज़ोर पकड़ने लगी।  ठीक उसी वक़्त एक फटकार भरी आवाज़ आई और काफी देर के लिए पूरी क्लास एकदम खामोश थी। 


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