प्रिंसिपल
साहिबा से मिलने के बाद आज जब
क्लास की तरफ रुख़ किया तब तक
कुछ अन्दाज़ नहीं था कि आज
क्या है? ना ही
प्रिंसिपल से बात करते हुए
ऐसा कुछ हमारी बातों के दरमियां
आया। सिड़ियों से ऊपर जाते
हुए कुछ साथी बहुत खूबसूरत
ड्रेस में तैयार नज़र आए...नए
कपड़े, कपड़ों
का मेच खाता मेकअप और बेग भी।
क्या बात है।
देखते
ही नज़र ने उनका पीछा उनके दूर
जाने तक किया। फिर कदम ऊपर
जाती सिड़ियों पर दोबारा बढ़े।
आज गैलेरी में सभी टीचरों का
गुट जमा था। वह आज अपनी-अपनी
क्लास छोड़कर यहीं डेक्स लगाकर
डेरा जमाए हुए बैठी हैं।
दुआ-सलाम,
हाय हैलो से जब आगे
बढ़े तो एक टीचर ने कहा- आज
भी कुछ कराने वाली हैं क्या
आप? कुछ ख़ास करवाएं
तो हमें भी बताना....उनकी
बात पर हामी भरते हुए आगे क्लास
की तरफ बढ़ी....क्लास
में आवाज़ें तो रोज़ाना जैसी
ही है लेकिन सब के सब आज पीछे
नज़र आए...नज़दीक
पहुंचने पर पता चला कुछ साथी
तैयार हो रही थी।
तभी एक
साथी बड़ी तेज़ आवाज़ में
बोली- “ आज ये गीता
मैम बनी हैं। आज ये हमें पढ़ाएंगी।
लेकिन क्लास में इनकी बात कोई
सुन नहीं रहा इसलिए ये चुपचाप
आकर पीछे बैठ गई हैं और आपस
में बाते कर रही हैं। कुछ
सैकेंड में ही समझ आ गया था आज
कि "टीचर डे"
है।
आज टीचर
का रोल ये साथी निभाने वाले
हैं। सबको अपनी-अपनी
सीट पर बिठाकर आज ये टीचर बने
साथी इस क्लास को रचने वाले
हैं। क्लास शुरु होते ही कुछ
पल की शान्ति और फिर से आवाज़ों
की गुनगुनाहट शुरु हो चुकी
है। सबकी नज़र टीचर बनी उन
दोनों साथियों पर थी और अब वह
उनकी बातचीत का हिस्सा भी बनी।
अब उनके कपड़ों को और मेकअप
को दोहराया जा रहा था और फिर
गीता मैडम से कम्पेयर करके
बताया जा रहा था कि गीता मैम
ऐसे कपड़े पहनती है, ऐसे
बात करती हैं, ऐसे
चलती हैं, इस तरह
पढ़ाती हैं और इस तरह बात करती
हैं। वह दोनों साथी जो एक ही
टीचर का रोल अदा करने वाली है
पूरी
क्लास अब इस प्ले के लिए तैयार
एक दम शान्त थी। इस प्ले के
दर्शक भी यही थे, कलाकार
भी यही थे और इसे रचने वाले
रचयिता भी यही थे। प्ले शुरु
हुआ.....टीचर बनी
साथी कमरे में दाख़िल हुई,
“गुड मोर्निंग मैम"
कहते हुए सभी साथियों
ने उनका स्वागत किया। "सिटडाऊन"
कहती हुई उस टीचर
ने हाथों से बैठने का इशारा
किया। तभी एक साथी ने तारीफ
में कहा- मैम आप
आप बहुत अच्छी लग रही हो। टीचर-
मुस्कुराती हुई
"थैंक्यू माई
डियर”। फिर डेक्स पर हाथ की
थपकी के साथ सबको एक बार फिर
शान्त किया । अटैंडस शुरु हुई
और उसके बाद एक पाठ पढाया
गया।....(लग रहा था
ये प्ले टीचर और स्टूडेंट के
बीच ही चलेगा।) लेकिन
वह टीचर एक संवादक के रोल प्ले
करती नज़र आई। पाठ के चलते-चलते
वह उसपर संवाद करने लगी....
कहानी में नए-नए
चित्रों की कल्पना साथियों
से करवाने लगी। इस वक़्त क्लास
बहुत उमदा लग रही थी। इस प्ले
में सब भागीदारी भी इमानदारी
से निभा रहे थे।
टीचर
से ये कल्पना नहीं की या देखा
नहीं, वह उस पाठ
के सवाल तलाश रही थी। साथी
भुला चुके थे। वह कौन-सी
टीचर बनी और वह खुद भी याद नहीं
रख पाई। प्ले करते-करते
वह सब सिर्फ संवादक की भूमिका
में नज़र आ रहे थे। वह साथी एक
अच्छे टीचर की कल्पना को खोल
रही थी जिसने अपने संवाद से
पूरी क्लास को बांध रखा था।
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