आज रोल नम्बर दरवाजे से शुरु होंगे सुनते ही मोनिका का जैसे दिमाग खराब ही हो गया हो। वह खीजती-सी अपना बेग उठाए खिड़की की तरफ चली। "प्राची तू मेरी सीट पर बैठ जा ना। मुझे खिड़की वाली सीट में बैठने दे ना।" कमरे के विभाजन पर ...."रोल नम्बर से बैठना जरूरी है" टिप्पणी करती प्राची ने उससे सीट बदल ली। क्योंकि मोनिका का नम्बर आगे वाली सीट पर था।
मोनिका
भी सबके बीच से निकलकर खिड़की
वाली सीट पर बैग पटकते हुए
डेस्क पर चढ़कर खिड़की से लगकर
जा बैठी। उसका पूरा ध्यान उस
खिड़की के बाहर ही था। उसकी
दोस्त ने उसे कई बार टोका "सुन
ना,
देख,
जल्दी
इधर आ ना,”
मगर
वह टस से मस न हुई। सबकी नज़र
धीरे-धीरे
उसी पर जा टिकी। एक खिलखिलाहट
का माहौल इस कमरे में बन चुका
था। जिसका केन्द्र बिन्दू
सिर्फ मोनिका बनी रही। तभी
वंशिका ने झुंझला कर उसका हाथ
खींचते हुए कहा...
वंशिका-
ऐ
पागल...सब
तुझपर हस रहे हैं क्या देख रही
है बाहर?
मोनिका-
चल
पागल होगी तू। कल हमने खिलौनेवाला
पाठ पढ़ा था न तो खिलौनेवाला
दिख गया। बस उसे ही देख रही
थी। क्या-क्या
है उसके पास?
मेरे
खिलौने तो मेरे छोटे भाई-बहन
ने ले लिए अब।
प्राची-
मेरी
तो फेवरिट है ये कविता।
मोनिका-
मैने
तो पहले से ही ये कविता पढ़ ली
थी। लेकिन अब मैं खिलौनों से
नहीं खेलती। मेरा भाई है ना
रोने लगता है। उसकी चीज़ को
हाथ भी लगाओ तो।
प्राची-
हंसते
हुए,
मैं
तो जब भी मेले जाती हूँ। हर
बार कुछ न कुछ खरीद कर जरूर
लाती हूँ। मेरी बहन-भाई
भी। फिर हम खेलते हैं एक साथ।
मेरे खिलौने कभी नहीं टूटते
बहुत पुराने-पुराने
खिलौने रखे हैं मेरे पास।
मोनिका-
तूने
इस बार क्या लिया था मेले से?
प्राची-
बर्तनों
का सेट वो भी बढ़े बर्तनों का।
मोनिका-
मै
तो नहीं लेती मेले से। मेले
में हर चीज़ महंगी मिलती है।
झूले देखे हैं जो हमारी गली
के बाहर आता है वो 5
रुपये
मे इतनी देर झूलाता है। मेले
में तो चार ही चक्कर में उतार
देता है और पैसे भी ज्यादा
लेता है। यह बात सुनकर आशी बोल
पड़ी-
अरे
हम पहले जहां रहते थे न वहां
पर ये गुड्डे-गुड़िया
बनते थे। इतने सारे गुड्डे-गुड़िया
ओटो-रिक्शा
में भर-भर
जाते थे। मुझे लगता है वो ही
दूकान पर आ जाते हैं बाद में
पैक होकर। मेरे जन्मदिन पर
नेहा ने अपने घर से छोटा सा
गुड्डा मुझे गिफ्ट दिया था।
प्राची-
तुझे
अब पता चला...
मेले
में जो रावन मिलते हैं ना हमारी
गली के लड़के भी वैसे रावन बना
लेते हैं और फिर रात को मेले
वाले रावन के जलने के बाद उसे
भी जला देते हैं।
आशी-
"तारे
ज़मीन पर”फिल्म में देखा था।
वो बेकार चीज़ों से कैसे इतनी
अच्छी नाव बनाता है।
"मैडम
आ रही है,
मैडम
आ रही है"
हांफते
शब्दों के साथ भागती हुई एक
साथी कमरे में दाख़िल हुई।
कमरा एकदम सवरा-सा
हो गया। अपनी-अपनी
सीटों को थामते कदमों की
हड़बड़ाहट में कविता पर चल
रहा संवाद भी गुम हो चला एक
मुस्कुराहट के साथ।
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