आज
फिर कदम उस ओर मुड़ चले हैं कई
दिनों के बाद । मुलाकातों की
उस जगह में जहाँ हर नए दिन नया
अनुभव बांटा जाता है । वह जगह
जो हर वक़्त जीवंत नज़र आती
है और जीने के लिए साधन को जीवन
से जोड़ना सिखाती है ।
इस
गली से गुज़रते हुए क्लास में
क्या चल रहा है अक्सर पता चल
जाता है गली के माहौल में एक
गूँज रहती है। गली में एक घर
से बाहर आती हुई एक महिला के
कहे शब्दों से पता चल ही रहा
है। वो झाड़ू लगाते हुए साथ
में बैठी पड़ोसन से कहती-"अब
देखो शुरु हो गया स्कूल,
आज दूसरा
ही दिन है और आवाज़ें सुनों,
इन आवाज़ों
में अपने घर की आवाज़ें ही खो
जाती है। कई बार लगता है कि
दरवाज़े पर ही कोई है। ये गूँज
पूरा दिन कानों मे गूँजती है।
दूसरी महिला उसकी बात पर हामी
जताती हुई मुस्कुराती हुई
बोली- "
हाँ देखो
ना, दो
महीने कैसे गुज़रे पता नहीं
चला लेकिन आज दो दिन ही हुए है
स्कूल खुले और गली का माहौल
सुबह से शाम तक बदलता रहता है।
दो दिन और रुक जाओ टाईम का
अन्दाजा भी लगने लगेगा घंटी
की आवाज़ों से,
घड़ी की
जरुरत ही नहीं पड़ेगी। पहली
महिला-
अब भी
अपनी झाड़ू की थाप जमीन पर
मारकर उसका पानी निचौड़ अभी
तो लगी थी प्रार्थना कि घंटी
इनकी। मेरी लड़की तभी निकलती
है। जिस दिन खाना लेकर ना भेजो
ये सामने वाली खिड़की से आवाज़े
लगाना शुरु कर देती है। अब
लड़को का दिवारों से कूदकर
भागना शुरु होगा"
उनकी
बातें अब भी जारी थी मगर उन
बातो का साथ छोड़ कदमों ने आगे
बढ़ना शुरु किया। गेट खुला
है कई कदमों के इंतजार में,
जिसकी
खिड़की जैसे झरोखें से झांकती
आंखें इस किराने कि दूकान पर
बैठी अम्मा को बुलाती और फिर
चीजों की फरमाईशें हुआ करती
हैं । अम्मा कि नज़र हमेशा उस
झरोखें के पार जाने कि कोशिश
में होती। कभी-कभी
वो उठकर देख भी लेती कहीं कोई
आवाज़ छूट तो नहीं गई ना। अम्मा
की खाट ज्यों की त्यों उसी
झरोखें से टिकी रहती है ।
प्लेग्राऊंड
कुछ नए चेहरों में खेल रहा है
। जिनकी आवाज़ें खाली कमरे
में गूँज रही हैं। लग रहा है
जैसे छुट्टी का दिन हो और नए
साथी अपना वक़्त देकर इस दिन
को भर रहे हों । जहाँ से कमरों
कि कतार शुरु होती हैं कई नन्हें
खाली डेस्क जो सही कतारों में
लगा रहे हैं। जो अभी इनसे
हिलाते नहीं हिल रहे थे। बोर्ड
पर दो महीने पहले की तारीख
28/04/11 और
गिनती के अक्षरों कि धुँधली-सी
परतें अब भी बाकी है। डेस्क
पर अँगुली रखते ही पता चलता
है। जैसे वाक़ई इसपर दो महीनों
से जम रही हवा-मिट्टी
कि परतें हैं। जहाँ पर अँगुली
की रगड़ से वह स्पेस खाली हो
अगुँली की छाप छोड़ चला था।
आगे
के कमरे में आवाज़ें गूँज रही
थी। तभी पीछे से मैम नमस्ते,
वो चेहरा
जवाब पाकर मुस्कुराता हुआ
आगे निकल गया। फिर कमरे दाख़िल
हो किसी फैसले में लग गए-”
देख,
मै तो आज
से यहीं बैठूगीं।” दूसरी-
"ये तो
मैडम के आने के बाद पता चलेगा?”
चल हट
...तुझे
क्या पता?
मैडम कुछ
नहीं कहेगी। क्या पता आज आए
भी ना आज दूसरा ही दिन है ना।
पता है मेरी मम्मी ने भी मना
किया आज आने के लिए पर मै तो आ
गई। आज मेरी मम्मी मेरी बहन
का दाखिला करवाने आएगी। मै
लाया करुँगी उसे स्कूल। फिर
पढाया भी करुँगी उसे।