बहुत
कम होता है जब टीचर स्रोता
बनकर इस कमरे में दाख़िल होती
है और एक संवादक की तरह खुद को
पेश करती है। हालांकि टीचर
से बेहतर संवादक क्लास के लिए
कोई नहीं है क्योंकि वह एक
सफ़र तय करती है उस क्लास के
साथ, उन
6 घंटो
में कभी कई बहाने होते हैं तो
कभी कई किरदारों से जूझती है।
वह अपने रोल बदले ना बदले लेकिन
साथियों के पल पल में बदलते
रूपों से मिलती वह जूझती है।
चुप
हो जाओ,
शोर
मत करो....आज
इस कमरे में इन वाक्यों की
जगह नहीं है या यूँ कहें कि
टीचर शायद भूल गई है कि वह क्लास
में है। वह इन वाक्यों को छोड़
इस कमरे में गूँजती आवाज़ों
से चहकती नज़र आ रही है।
साथियों
के बीच अपनी फिक्स छवि को खो
चुकी वह टीचर खुद को उनके बीच
रख पाने की कोशिश कर रही है।
अगले दिन की प्लानिंग में टीचर
ने एक संवादक के रूप में इस
कमरे में कदम रखा है। कई तरह
के ढांचे और अस्थिर माहौल ने
करवट सी बदली है और क्लास ने
एक मंच का रूप लिया है। इस भागते
माहौल में वह टीचर के रोल को
भूलकर शामिल हुई।
वह
हर साथी के साथ ऐसे जुड़ती
जैसे उससे पहली बार मिल रही
हो। वह उस साथी की इच्छा पर एक
संवाद कायम करती और नज़दीकी
बरकरार करती। वह अपनी किसी
फिक्स जगह में नहीं है। वह वो
कौने तलाशती जो साथी अपने
अनुभव से भरते हैं। टीचर की
बैचेनी साफ झलक रही है। साथी
उसे नए की तरह देखकर खुश होते
और खुद को रखते....वह
इस रूप को बहुत नज़दीकी से
लेते और टीचर को अपने बीच
शामिलगिरी में लेते नज़र आ
रहे हैं। कौने का वो साथी जो
हर बार खुद को छुपाता है कि
कहीं वो टीचर उसे देख ना ले या
उसे कुछ कह ना दे बजाय इसके वो
हाथ करके उस टीचर को पास बुलाती
और अपना राजस्थानी गीत सुनाती
टीचर के चेहरे पर एक उल्लास
और जिज्ञासा उभर आई इस बुलावे
पर जैसे वह उस साथी से आज पहली
बार मिली हो या वह साथी उससे
पहली बार मुखातिब हुई है। अबतक
सिर्फ नाम और रोल नम्बर का
रिश्ता था पर आज श्रोता और
कहंकार का रिश्ता है। जिसमें
वह साथी ना स्टूडेन्ट है और
न ही कोई नाम या रोल नम्बर।
चार
साल के सफ़र के बाद ये क्लास
उस स्तर पर है। जहाँ वह एक-दुसरे
को जानकर कर रिश्ता बना चुके
हैं। वह हर साथी की मूवमेंट
को जानती है। मगर कभी परखा
नहीं। वही परख वह आज करना चाह
रही है। टीचर की दिलचस्पी
साथियों के बीच से अनुभव बटोरते
रहने की है। वह उनके निजी वक़्त
को टटोल रही है और दैनिक जीचन
में दाख़िल होना चाह रही है।
वह उनके दैनिक जीवन की कहानियाँ
और गीत सुनती। देखते ही देखते
क्लास ए.बी.सी
ग्रुप में विभाजित हुई। ग्रुप
में ये भी तय हुआ कि कौन-सा
ग्रुप क्या करने वाला है।
प्रेक्टिस चल रही है। हर ग्रुप
में पहली परफॉरमर वह खुद बनी।
जब साथी हस पड़ते तो उनके साथ
वह भी हस पड़ती। आज वह टीचर को
उस चार साल के अनुभव और साथियों
की दिलचस्पी को एक परफॉमेंस
के थ्रू स्कूल में करवाने की
कोशिश में नज़र आई। जिस कोशिश
में क्लास ने आज कुछ वक़्त
के लिए ही सही पर एक खूबसूरत
तस्वीर ली।