करीब आकर, किससे मिलना है आपको?
आपनी सीट पर बैठे हुए ही पुछा "दीदी क्या नाम है उसका?”
पीछे ज़ोर चिल्लाते हुए एक बोली किसकी दीदी आई है?
फिर धीरे-धीरे बातों का कहीं गुम जाना।
फिर अपनी-अपनी सीट पर पहुँचना।
कमरे से अन्दर बाहर होना बन्द हो जाना।
बार-बार उपर से नीचे सामने खड़े व्यक्ति को देखना ।
फिर धीरे-धीरे मुस्कुराना।
काफी देर यही चलता रहा।
अपने साथी से सवाल करना- "क्या ये नई टीचर है?”
किसी का नज़रे मिलाकर हँस देना, तो किसी का नज़रे झुका लेना।
बार बार करीब आने की कोशिश करना।
फिर कहना आज हमारी मैडम नहीं आई।
पहले दिन क्लास में कदम रखते ही जब बहुत देर तक सिर्फ उन्हें देखना हुआ:
"यही सब चलता रहा सबको इन्तजार था कमरे में दाखिल हुए व्यक्ति के परिचय का। परिचय जैसे महत्व रखता है बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए वरना वक़्त जैसे थम-सा जाता हो। उस वक़्त ये कमरा सिर्फ चेहरों के कई भावों को जीता है या नए सवालों को खोलकर अजनबी का परिचय सोचता रहता है।"
kiran
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