वैसे तो ये कमरा सुनने के रियाज़ में हमेशा ही रहता है पर आज सुनने-सुनाने के रियाज़ में लग रहा है। जितने सुनने को तैयार है उतना ही सुनाने को बेताब भी है। कोई कविता कहना चाहता है तो कोई कहानी सुनाना चाहता है अपनी किताबों कि कहानियों से अलग जो उनहोंने अपनी दादी या नानी से सुनी थी। सब अपनी कहानी बॉर्ड के सामने आकर सुनाना चाहते थे जैसे हमेशा से होता आया है कि जिसे भी कुछ कहना होता है या किताब पढ़नी होती वह साथी सामने आकर सुनाता है।
मगर आज कुछ अलग करने का सोचा... सभी ने अपने डेक्स छोड़े और जमीन पर बैठे। सबको इस तरह बैठना शायद अजीब लग रहा था क्योंकि वह तो इस तरह सुबह प्रार्थना में बैठते हैं। फिर सब एक गोलाकार के आकार में बैठे जहाँ कहानी कहने वाला भी उनमें ही शामिल था। अब कविता शुरू हुई..."मन करता है" तीसरी कक्षा कि ही किताब से" तो बत्तो ने कहा मेरा मन करता मैं भी मैडम बन जाऊं और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनूँ, पूजा ने कहा: " मै तो पायलेन बनना चाहती हूँ ताकि ऊपर से सबको देखूं । तभी सोनाली मुझे भी कविता सुनानी है उसने भी ऐसी ही एक कविता सुना दी।
फिर ने अपनी दादी कि थोड़ी भुली हुई सी कहानी कहना शुरु किया, जब कहानी में कोई हसीं का वाक्य होता तो सभी एक-दुसरे के हाथों का स्पर्श करतेहुए हँसते या एक दुसरे पर झुक जातेऔर कहानी सुनाने वाला भी इसका हिस्सा बनता वो कहानी सुनाते हुए कभी रुकता कभी हँसता फिर सुनाता। उसे अपनी कहानी सुनाकर बैठने कि जल्दी नहीं थी। देखकर लग रहा था कि रोजाना के बैठने के रुटीन से हटकर अगर बैठने के अन्दाज को बदल दें या किसी और रियाज़ से उसे दोहराएँ तो वह उस रियाज़ को और गहरा कर देता है। किसी को कहानी अधुरी याद थी तो किसी को सिर्फ कुछ हँसी के वाक्य ही याद थे। सभी कहानियों से बाहर आकर अपने गांव के बारे में बताने लगे कि वह जब गांव जाते हैं तो कहाँ बैठकर या लेटकर कहानी सुनते हैं और उनकी नानी या दादी कैसे उसे कई बार टालने के बाद कोई कहानी सुना ही देती है। किसी कि नानी इतनी लम्बी कहानी सुनाती है कि उसे आजतक याद ही नही कि कहानी शुरु कहाँ से हुई थी उसे तो बस कहानी के हँसी वाले हिस्से ही याद हैं। तो किसी को काहानी कि शुरुआत ही याद है सब तसल्ली में जमे बैठे हैं सबके चेहरे से अजीब लगने का एहसास कहीं उड़ गया था कहानियों कि गर्माहट में,आज ये सुनना सुनाना एक महफिल कि तरह हुआ।
kiran
मगर आज कुछ अलग करने का सोचा... सभी ने अपने डेक्स छोड़े और जमीन पर बैठे। सबको इस तरह बैठना शायद अजीब लग रहा था क्योंकि वह तो इस तरह सुबह प्रार्थना में बैठते हैं। फिर सब एक गोलाकार के आकार में बैठे जहाँ कहानी कहने वाला भी उनमें ही शामिल था। अब कविता शुरू हुई..."मन करता है" तीसरी कक्षा कि ही किताब से" तो बत्तो ने कहा मेरा मन करता मैं भी मैडम बन जाऊं और अच्छे-अच्छे कपड़े पहनूँ, पूजा ने कहा: " मै तो पायलेन बनना चाहती हूँ ताकि ऊपर से सबको देखूं । तभी सोनाली मुझे भी कविता सुनानी है उसने भी ऐसी ही एक कविता सुना दी।
फिर ने अपनी दादी कि थोड़ी भुली हुई सी कहानी कहना शुरु किया, जब कहानी में कोई हसीं का वाक्य होता तो सभी एक-दुसरे के हाथों का स्पर्श करतेहुए हँसते या एक दुसरे पर झुक जातेऔर कहानी सुनाने वाला भी इसका हिस्सा बनता वो कहानी सुनाते हुए कभी रुकता कभी हँसता फिर सुनाता। उसे अपनी कहानी सुनाकर बैठने कि जल्दी नहीं थी। देखकर लग रहा था कि रोजाना के बैठने के रुटीन से हटकर अगर बैठने के अन्दाज को बदल दें या किसी और रियाज़ से उसे दोहराएँ तो वह उस रियाज़ को और गहरा कर देता है। किसी को कहानी अधुरी याद थी तो किसी को सिर्फ कुछ हँसी के वाक्य ही याद थे। सभी कहानियों से बाहर आकर अपने गांव के बारे में बताने लगे कि वह जब गांव जाते हैं तो कहाँ बैठकर या लेटकर कहानी सुनते हैं और उनकी नानी या दादी कैसे उसे कई बार टालने के बाद कोई कहानी सुना ही देती है। किसी कि नानी इतनी लम्बी कहानी सुनाती है कि उसे आजतक याद ही नही कि कहानी शुरु कहाँ से हुई थी उसे तो बस कहानी के हँसी वाले हिस्से ही याद हैं। तो किसी को काहानी कि शुरुआत ही याद है सब तसल्ली में जमे बैठे हैं सबके चेहरे से अजीब लगने का एहसास कहीं उड़ गया था कहानियों कि गर्माहट में,आज ये सुनना सुनाना एक महफिल कि तरह हुआ।
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